देवरिया : बैलगाड़ी से बरात सजाकर सुर्खियों में रहे छोटेलाल बुधवार की शाम फिर चार बैलगाड़ियों के साथ दुल्हन की विदाई कराने पकड़ी बाजार के बरडीहादल गांव पहुंचे। दुल्हन की विदाई डोली में हुई। सजी डोली में सवार होकर सरिता पीहर को निकली तो उसे विदा करने महिलाएं गांव के सिवान तक गईं। बैलगाड़ी पर निकली बरात को देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई। लोगों ने अपने मोबाइल से दूल्हे और बैलगाड़ी के साथ इस पल को सेल्फी के माध्यम से कैद किया।
फिजूलखर्ची और पर्यावरण को संरक्षण देने का संदेश देने वाली इस शादी की चर्चा चारों ओर हो रही है। जिले के कुसहरी गांव निवासी छोटे लाल पाल फिल्म इंडस्ट्री में काम करते हैं। 11 बैलगाड़ियों से 32 किलोमीटर की यात्रा कर पालकी से ससुराल पहुंचे छोटे लाल ने अपनी शादी को यादगार बना दिया। चार दिन बाद दुल्हन की विदाई कराने भी चार बैलगाड़ियों के साथ वह ससुराल पहुंचे। दुल्हन को विदा कराने के लिए पालकी लेकर आए।
चार कहारों के कंधो पर दुल्हन सरिता पाल की डोली उठी तो देखने के लिए गांव की महिलाओं का तांता लग गया। पालकी में सवार होकर दुल्हन अपने साजन के द्वार पहुंची।
सरिता के पिता नहीं है। वह तीन बहनों से दूसरे नंबर की है। बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। माता सुशीला देवी लड़की के विदाई के समय भावुक हो गईं। चचेरे भाइयों ने बहन की डोली उठाकर कुछ दूर तक पहुंचाया। यह नजारा देखने के लिए उसके दरवाजे पर अहले सुबह आस पास के कई गांवों के लोग जुट गए।
छोटेलाल ने बताया कि उनकी मां कोईली देवी का स्वर्गवास 1998 में हो गया। पिता का भी साया 2006 में छीन गया। वर्ष 1999 में हाईस्कूल की परीक्षा में फेल होने के बाद 2002 में मुंबई चला गया। फिल्म इंडस्ट्री में आर्ट का काम करते हैं।
प्रदूषण से जनजीवन पर पड़ रहे कुप्रभाव को लेकर लोग जागरूक हों इसलिए मैंने पुरानी परंपरा को जीवित करने की पहल की है। इससे प्रदूषण में कमी, ईंधन की बचत और खर्चीली शादियों पर लगाम लगेगा।
फिजूलखर्ची और पर्यावरण को संरक्षण देने का संदेश देने वाली इस शादी की चर्चा चारों ओर हो रही है। जिले के कुसहरी गांव निवासी छोटे लाल पाल फिल्म इंडस्ट्री में काम करते हैं। 11 बैलगाड़ियों से 32 किलोमीटर की यात्रा कर पालकी से ससुराल पहुंचे छोटे लाल ने अपनी शादी को यादगार बना दिया। चार दिन बाद दुल्हन की विदाई कराने भी चार बैलगाड़ियों के साथ वह ससुराल पहुंचे। दुल्हन को विदा कराने के लिए पालकी लेकर आए।
चार कहारों के कंधो पर दुल्हन सरिता पाल की डोली उठी तो देखने के लिए गांव की महिलाओं का तांता लग गया। पालकी में सवार होकर दुल्हन अपने साजन के द्वार पहुंची।
सरिता के पिता नहीं है। वह तीन बहनों से दूसरे नंबर की है। बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। माता सुशीला देवी लड़की के विदाई के समय भावुक हो गईं। चचेरे भाइयों ने बहन की डोली उठाकर कुछ दूर तक पहुंचाया। यह नजारा देखने के लिए उसके दरवाजे पर अहले सुबह आस पास के कई गांवों के लोग जुट गए।
छोटेलाल ने बताया कि उनकी मां कोईली देवी का स्वर्गवास 1998 में हो गया। पिता का भी साया 2006 में छीन गया। वर्ष 1999 में हाईस्कूल की परीक्षा में फेल होने के बाद 2002 में मुंबई चला गया। फिल्म इंडस्ट्री में आर्ट का काम करते हैं।
प्रदूषण से जनजीवन पर पड़ रहे कुप्रभाव को लेकर लोग जागरूक हों इसलिए मैंने पुरानी परंपरा को जीवित करने की पहल की है। इससे प्रदूषण में कमी, ईंधन की बचत और खर्चीली शादियों पर लगाम लगेगा।
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